मलयाळम कहाणी


भींत

- माधवीकुट्टी 


माणक, मासिक, जुलाई 2013


दिनुंगै कांम माथै जांवणै सारू कार मांय बैठती बगत मुड़नै म्हैं कैयौ, ‘‘आज शेयर होल्डरां री अेक बैठक है। म्हंनै बावड़नै मांय अंवार हुयसी।’’
कुण-ई इण बात री गिनार नीं करी। म्हंनै आस ईज नीं ही कै कुण-ई ध्यांन देयसी। फगत इंयां-ई कैय दीन्हौ हौ। अेक बांण भुगताई। कार मांयनै बैठनै म्हैं फेरूं खुद रै कड़ूम्बै नै ओळख्यौ। म्हारी जोड़ायत पोती रै हाथ री आंगळियां रा नख काटै ही। बेटी माळी नै रोळा करै ही। बडोड़ै छोरै री जोड़ायत आपरी कंवळी आंगळîां सूं मेज मांथली फिलमी मैगजीन रा पाना पळटै ही। दूजौ बेटौ रेडियै सूं क्रिकेट मैच री कमेंटरी सुणै हौ..... नाऊ कम्स मांकड.....
दोनूं पासै गोळ बत्यां लागेड़ौ लाॅन लांघनै कार रोड कांनी मुड़ी। ‘‘कित्ती बरियां म्हैं इण धवळै गुलाब री डाळîां नै संवारणै सारू कैयौ! बरियां-बरियां कैवणै पछै-ई......’’
म्हैं अेक सिगरेट चासी अर सीट माथै पसरतां थकां आपरै कड़ूम्बै पेटै सोचणै ढूक्यौ। बिना किणी कारणै सूं म्हैं क्यूं आं सगळा सूं अळगौपणौ मैसूसूं? वांरै साथै बैठ्यां म्हंनै इंयां लागै कै म्हैं आंरै भेळौ क्यूं हुयौ हूं? जांणै मारग री चूंधी खायनै दूजी ठौड़ पूगग्यौ हुवूं। वा मोटळी लुगाई, जिणरै कांन मांथला बाळ पाका हुवणै लाग्या, बूझती हुयसी, दही री खटास ठीक है नीं!
करड़ी बोली वाळी छोरी रसोइयै नै ललकारती हुयसी, ‘‘म्हैं कित्ती बरियां कैयौ, मटन मांय लसण नीं गेरîाकर। थंनै बरियां-बरियां कैवणै पछै-ई.....’’
मेज रै पाखती घुंडीवाळै बाळां रौ अेक आदमी बैठ्यौ हुसी, जिणरौ रूप लुगाई सूं मेळ खावै। वौ कैंवतौ हुसी, ‘‘रामा, पांणी ल्याव।’’ जिवणै पसवाड़ै बैठी गोरीगट्ट छोरी रंगीजेड़ा नखां वाळै हाथां सूं चावळां रौ अेक-अेक दांणौ चकनै खावती हुसी....। वठै-ई म्हंनै अेकलपौ लागै। म्हैं क्यूं इणांरै बिच्चै मेज रै पाखती बैठ्यौ हूं? दमघूटू अेकभांत लय हीण, जांणै पिकासौ रै करड़ै अर आडी-टेढ़ी लकीरां सूं लड़ालूम कैनवास माथै रवि वर्मा री जूंनी सिस्टी नै लायनै ओपमा दीन्ही हुवै।
डावै पासै बैठी वा अधखड़ लुगाई फेरूं बूझै, दही री खटास ठीक तौ है नीं!
बोलबालौ रैवणै सूं कांम नीं चालसी। औ तौ म्हारौ कड़ूम्बौ है, म्हारै जीवण रौ फळ। बरसां-बरस इणसूं अटकाव नै अळगौ करनै, चिलकायनै, सिणगारनै म्हैं म्हारै कड़ूम्बै नै इण भांत संवारîौ है कै अबै कुण-ई नीं कैयसी कै औ कड़ूम्बौ पैलां जैड़ौ है। इण बदळाव माथै म्हंनै गिरबौ करणौ चाहीजै। म्हैं खासौ तौ नीं, कमती ई मैसूसौ है। पण अबै वा गिरबै री रुणक चांणचकै मांदी पड़गी। गिरबै री तौ बात-ई छोडौ। औ म्हारौ कड़ूम्बौ है? मक्खण रै रंग री साड़ी पैहरîा, आपरै टाबरां अर पोती-पोत्यां सूं बिचाळै-बिचाळै विदेसी भासा मांय बतळावण करणै वाळी अधखड़ लुगाई रै इण पैरापै मांय-ई लगैटगै तीस बरसां मांय बदळाव आग्यौ। पछै-ई आ वा-ई माधवीकुटटी है, जिणनै ब्यावनै म्हैं पैलपोत गाडी मांयनै बैठाई ही। म्हैं इण बात नै क्यूं भूलग्यौ?
वै दिन, बीतेड़ौ हरेक दिन- वै सैंग कित्ता छोटा, कित्ता कमती सबदां सूं भरîोड़ा हा! जीवण मांयनै आगीनै बधणै री आफळ करतै हरेक जवांन अर वींरी जोड़ायत री छेहड़ैबिहूणी आस-उम्मीदां।
छात माथै पीतळ सूं बण्योड़ै अकोड़ै माथै टांगीजै गाभै सूं बणाइजेड़ै पालणै नै हलांवता थकां माधवीकुटटी बूझै, ‘‘सुणौ, क्यूं नीं आपां इणरौ नांव भास्कर थरपां? आच्छौ नांव है नीं!’’ 
‘‘छिः! इण रै औ नांव फबै नीं।’’
‘‘मनोहर राखलां।’’
‘‘के?’’
‘‘मनोहर।’’
‘‘हां, ओ ईज आच्छौ नांव है।’’
‘‘लिली, कांईं मनोहर अबै तांणी नीं आयौ? साढ़ै आठ बजग्या?’’
‘‘नीं।’’
‘‘के वौ आवणै री कैयग्यौ हौ?’’
‘‘नीं।’’
आजकालै मनोहर घरां हफ्तै मायं च्यार दिन मोड़ै पूगै। बिक्री विभाग रै मैनेजर रै रूप मांय इण बरस प्रमोशन हुवणै रै पछै तौ लगैटगै। मनोहर रै दफ्तर मांय मोटर बिणज री उळझणां कारणै साल रै सरू मांय खासा लोगां नै राजी राखणां पड़ै। अैड़ा लोगां नै ग्रेच्युइटी अर दूजा भुगतानां रै पछै बाकी कर्मचारîां री तिणखा कमती पड़ जावै। मनोहर कैवै कै भारत मांय मजूरां नै बेसी पोमाइजै। इत्ती-सी उम्र वाळै मनोहर रै मूंडै सूं आ बात निसरी तौ म्हंनै दुख पूग्यौ। इण भांत राजावू सोच इण उम्र मांय नीं हुवणी चाहीजै। राजावू सोच पाळता बडेरा मिनखां नै माफ करीज सकै, वै तौ खिरता पांन हुवै। पण भविख मांय मनोहर नै लोग किंयां सैयसी?
कार थम्मी। म्हंनै तद-ई ठाह पड़îौ कै बिरखा हुवै। चपड़ासी छत्तौ लायौ। म्हैं सिर झुकावतौ कार सूं निसरîौ अर वीं बडै दफ्तर मांय बड़ग्यौ, जठै तीस बरसां सूं हाजरी बजावूं।
मांयनै हाॅल मांय अबै तांणी कुण-ई नीं पूग्यौ हौ। हां, क्लर्क पिल्लै जरूर कीं लिखै हौ। म्हैं इण संस्था मांय सैंग सूं बेसी नौकरी करी है, दूजी ठौड़ पिल्लै री है। अेक जमानै मांय म्हे दोनूं आंम्ही-सांम्ही बैठनै कांम करता। वीं बगत म्हैं इणनै ‘पिल्लै भाईजी’’ कैंवतौ। हवळै-हवळै म्हैं हाॅल छोडनै आगीनै बधग्यौ। ‘पिल्लै भाईजी’ बोल नीं जांणै कठै गमग्यौ। मिणत अर कीं भाग रै कारणै पैड़ी-पैड़ी बधाव हंुवतौ रैयौ अर अबै जायनै म्हैं इण बैंक रौ मैनेजर हूं। आज अेक रिपियै सारू ग्यारा पिस्सा टैक्स देंवणै वाळै बगत मांय-ई पिल्लै वा-ई कमती तिणखा गूंजा मांयनै घालनै घरै बावड़ै। वींरौ टकलौ सिर अर घंस्योड़ी खद्दर री बुरसट देखनै म्हंनै केई बरियां लाग्यौ, पिल्लै री इमदाद करणी चाहीजै। पण हिम्मत नीं करीजी। 
पिल्लै चोखी भांत कांम नीं करै। अठीनै-वठीनै देखनै सीधौ लोह रै गोळै मांय कूदणै वाळै गंडकै री भांत, बिना किणी फरक, बिना थकेलै, आगीनै बधणै री बिना कीं आफळ रै, पिल्लै अजै बैंक रै हाॅल मांय आपरी मेज धक्कीनै बैठ्यौ है। हुंसयार जवांन पिल्लै नै लारै छोडनै असिस्टेंट मैनेजर तांणी बणग्या। म्हैं पिल्लै री इमदाद किण भांत करतौ। के मलयाळी हुवणै रै नातै कै सरूवात मांयनै पिल्लै भाईजी कैवणै रै पेटै?
म्हैं कमरै मांय बड़îौ अर कोट नै भींत माथै टांग्यौ। मेज ऊपरां उण दिन रा अखबार धरîोड़ा हा। खास खबर, बैंकां सूं जुड़îोड़ी खबरां, लाल पेंसिल सूं चांकीजेड़ी ही। औ कांम असिस्टेंट मैनेजर रामचंद्रन करै। नौकरी मांय वींरौ प्रमोशन हाल-ई हुयौ है। पण हगीगत मांय रामचंद्रन बैंक रौ बिचाळौ बणग्यौ। पछै-ई, वीं मुधरै सुर वाळै जवांन रै कमरै मांयनै आयनै, वींरी हूंस देखनै म्हैं राजी हुय जावूं।
जंगळां माथै बिरखा री छांटां जोर दिखावणै लागी। म्हैं जंगळां नै खोल्या अर कुरसी माथै आ बैठ्यौ। बारै खासा हरîां पत्तां माथै बिरखा री बडी-बडी छांटां नाचै ही। म्हारौ मन चांणचकै-ई केई बरस लारै लांघनै पालक्काड रै अेक छोटै-सै गांव मांय पूगग्यौ, जठै झूंपड़ी रै कूंपलै सूं पांणी चूवै हौ। आंगणै मांय बासण भेळा हुयग्या हा। हरेक बासण मांय छांटां पड़णै री टणकार आवै ही। ‘‘नारायण कुट्टि दीदा फाड़नै के देखै? अठै आयनै पाठ बांच।’’
‘‘नारायण कुट्टि!’’ औ तौ बुलावणै रौ जूंनौ सबूत है। औ हेलौ वीं झूंपड़ी कै छप्परै सूं, जठै पांणी बरसै, पून रै अटावरैपणै सूं नाचता आम रा दरखत अर अंग्रेजी री पैली पोथी रै जमानै मांय हुवतौ। अै बोल आज कठै सुणीजै। बाळां नै अेक पासै जचायां, पतळी-सी, सांवळै रंग री, अेक मां आपरै बेटै नै हेलौ करै ही। अर.....
चांणचकै-ई दरुजौ खोलनै रामचंद्रन बड़îौ। ‘‘माफ करज्यौ, म्हंनै कीं कैवणौ है।’’ रामचंद्रन जंगळा ओढ़ाळ दीन्हा। आंगणै मांय खिंडतै पांणी नै देखनै रामचंद्रन चपड़ासी पेटै बड़बड़ावणै लाग्यौ।
‘‘म्हैं खोल्या हा, के केवणौ चावौ? आज री बैठक पेटै?’’ म्हैं बूझîौ।
रामचंद्रन नै बैठक रै पेटै-ई बतळावण करणी ही। ‘‘लारलै हफ्तै जिण लोह री फैक्टरी वाळां रिपिया उधार मांग्या हा, वींरी सरूवात दो-तीन लोगां मिलनै करी ही। वा फैक्टरी घाटै मांयनै चालै। म्हैं ठाह लगायौ है। वांनै उधार मत्ती देवौ, म्हारी तौ सल्ला है कै उधार मत्ती देवौ।’’
‘‘हां, म्हैं ध्यांन राखसूं। और कीं!’’
रामचंद्रन कीं कैवणौ चावै हौ। ‘‘इण बरस जकां रौ प्रमोशन हुयौ है, वांरी लिस्ट बांचनै सुणावूं। जे वीं मांयनै कीं बदळाव करणौ हुवै तौ। बिंयां बदळाव री दरकार नीं हुयसी। म्हैं खासा सोच-समझनै लोगां रा नांव मांड्या है......।’’
‘‘बांच...।’’
‘‘इण बरियां-ई पिल्लै रौ नांव नीं। अबकै पिल्लै रौ नांव जोड़ दै।’’
‘‘अरै, वौ बूढ़ौ क्लर्क पिल्लै। इणरी दरकार कोनी। वौ तौ आळसी है। म्हैं हरमेस सोचूं कै पिल्लै नै इस्तीफौ देवणै सारू कैवूं। वौ जाबक आळसी है।’’
‘‘नीं, इण लिस्ट मांय पक्कायत-ई पिल्लै रौ नांव हुवणौ चाहीजै।’’
‘‘ठीक है, पछै म्हंनै और कीं नीं कैवणौ।’’
रामचंद्रन गयौ परौ। बिना खुड़कै दरुजौ बंद हुयग्यौ। फेरूं म्हैं म्हारी मनगत मांय गमग्यौ। दिमागू दुख बधै हौ। शेयर होल्डरां री मीटिंग सूं पैलां नफै-नुकसांन रौ हिसाब त्यार करणै री भांत ईज आज म्हैं क्यूं खुद री जिंदगाणी रा काट्योड़ा बरसां रौ नफौ-नुकसांण जांचणै बैठग्यौ? नीं, म्हारै टाबरपणै मांय आज सूं बेसी मौज ही, किंयां? बगत री बखड़ी मांय दुखां रौ रंग फीकौ हुय जावै। फगत सुख रा छिण-ई चेतै रैवै। डील रै तौल मांय-ई फरक आ जावै। जका भलेरा कांम म्हैं नी करîा, अर जकी गळत्यां म्हैं करी, दोनूं मन नै आखतौ करै ही।
म्हैं कठै गळत हुयौ? भांत-भांत री उछाळ अर खुसियां रै पछै-ई म्हैं बेराजी क्यूं हूं?
मिनख हरमेस अेकलौ है। आपरै घेरै कुंडाळै मांय-ई वौ अेकलौ रमै। खुद रै अेकलपै रौ ग्यांन बधती उम्रवाळां मांय-ई नीं, सगळा मिनखां मांय हुवै। मिनखां रै बीचै रोजीनै केई छोटी-छोटी भींतां चिणीजै। रिपियै, रंगभेद, मनभेद री- अैड़ी केई छोटी-छोटी भींतां। वांनै तोड़नै प्रेम अर अपणापै रै मारग चालनै ईज जीवण रै छैहलै पूगीज सकै। पण, हरेक नै आपरै सवालां रौ उथळौ खुद मिलै। स्यात् वौ ईज उथळौ ठीक हुवै।
घरां बावड़नै म्हैं बिस्तरै माथै पसरतै थकां कैयौ, ‘‘माधवीकुट्टी, म्हैं नौकरी सूं इस्तीफौ देवणै री सोचूं।’’
‘‘क्यूं? कीं खास कारणै सूं?’’
‘‘कीं खास नीं, केई दिनां खातर गांव जायनै रैवणै री मनगत है। अबै आपां दोनूं बूढ़ा हुयग्या।’’
जोड़ायत कीं उथळौ नीं दियौ। पून रै अटावरैपणै कारणै जंगळै रा किंवाड़ भेड़ीजग्या। बारै बिरखा हुवै ही।

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